विद्यार्थी जीवन जब शुरू होता है बड़ा आनंदित करता है बगैर तनाव के हम अपने जीवन की शुरुआत करते हैं  न कुछ खोने का डर और न पाने की चाहत ,शुरू में हम केवल सीखते हैं कभी अच्छे मार्क्स के लिए ,कभी टॉप करने के लिए परन्तु हमारे अध्यापक , अभिभावक हमसे कुछ अलग ही अपेक्षा रखते हैं जहां टीचर हमें जिंदगी की दौड़ में  प्रथम रखना  चाहते हैं इसके लिए वह रात दिन प्रयास करते हैं  वहीं हमारे अभिभावक हमें सफल होना देखना चाहते हैं और यह उम्मीद करते हैं कि मेरा बच्चा है एक सफल इंसान बने।बच्चे का सफल होना और जिंदगी की दौड़ में प्रथम आना ,यह बच्चे के जीवन का मकसद बन जाता है और बच्चा सफल होना और प्रथम आने की जंग में उतर जाता है ऐसी जंग जिसके दो किनारे हैं अध्यापक का बच्चे  की योग्यता पर ध्यान रहता  है वहीं  अभिभावक का अपने सपने को पूरा करने के लिए, यही कसमकस  बच्चों को परेशान करती है कि बच्चा अपनी योग्यता के अनुसार पढ़ें या अभिभावक के सपने के अनुसार पढ़ें । इस अवस्था में  विचारों का मिलन नहीं हो पाता है एक बच्चे का जीवन नदी के दो किनारों की तरह हो जाता है और बच्चा इस कशमकश में न जिंदगी की रेस में सफल हो पाता है और न ही अभावों के सपनों को पूरा कर पाता है अब जरूरी हो चला है कि बच्चे का भी विचार जाना जाय अध्यापक का विचार जाना जाय   और अभिभावक का भी ,एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो बच्चों का भविष्य अभिभावक अध्यापक व बच्चे से बात कर ,बच्चे का भविष्य   तय कर सके यह नितांत आवश्यक है और यह एक सफल विद्यार्थी के लिए जरूरी है अन्यथा वह योग्यता व सफलता की रेस में  बढता ही रहेगा ,वह तय नहीं कर पाएगा कि वह सफल है या योग्य है ………



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